कोरोना के मुकाबले नियमित टीकाकरण ज्यादा चुनौतीपूर्ण 

 
नियमित टीकाकरण के लिए गुजरना पड़ता है एक लंबी प्रक्रिया से
कोरोना का टीका अभियान चलाकर टारगेट किया जा सकता है पूरा
बांका, 16 अगस्त
पिछले दो साल से कोरोना का शोर चल रहा है। इससे बचाव को लेकर लोग तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं। अच्छी बात यह है कि कोरोना से बचाव को लेकर टीका भी आ गया है। जो लाभार्थी (उम्र 18+) कोरोना टीके की तीनों डोज और (उम्र 12-17) के लाभार्थी दोनों डोज ले चुके हैं, वे काफी हद तक सुरक्षित भी हैं। अगर उन्हें कोरोना हो भी गया तो वे आसानी से इससे उबर जाएंगे। साथ ही अस्पताल में भर्ती होने की नौबत भी कम ही आएगी। इसके साथ-साथ नियमित टीकाकरण और ज्यादा महत्वपूर्ण है। नियमित टीकाकरण हो जाने से बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जाती है और तमाम बीमारियों से उसका बचाव होता है। तुलनात्मक तौर पर देखें तो नियमित और कोरोना टीकाकरण में बहुत अंतर है। एसीएमओ डॉक्टर अभय प्रकाश चौधरी कहते हैं कि कोरोना टीकाकरण एकबारगी में अभियान चला कर किया जा सकता है, लेकिन नियमित टीकाकरण के लिए एक प्रक्रिया का पालन करना पड़ता है। इस नियमित प्रक्रिया का पालन  करने के लिए बच्चे के परिजन से लेकर स्वास्थ्यकर्मियों तक को सजग रहना होता है। तब जाकर यह प्रक्रिया पूरी होती है। 
यह प्रकिया महिला के गर्भधारण के साथ ही हो जाती है शुरूः बच्चे के बेहतर स्वस्थ्य को लेकर जैसे ही माता के गर्भधारण का पता चलता है, इसके तुरंत बाद माता का टीकाकरण शुरू हो जाता है। डॉ. चौधरी कहते हैं कि जैसे ही पता चलता है कि महिला गर्भवती है तो उसे टीटी टीका की पहली खुराक दी जाती है। इसके एक महीने के बाद टीटी टीका की दूसरी खुराक का टीका दी जानी चाहिए। अगर महिला टीटी प्रथम और द्वितीय खुराक लेने के तीन साल के अंदर गर्भवती हुई हो तो उसे टीटी की एक बूस्टर डोज दी जाती है।
बच्चे का टीकाकरण जन्म लेने के साथ ही हो जाता है शुरूः डॉ. चौधरी कहते हैं कि जैसे ही बच्चा जन्म लेता है उसे तत्काल जीरो/बर्थ डोज के अंतर्गत, सबसे पहले हेपेटाइटिस बी का टीका दिया जाता है। यदि माता को   हेपेटाइटिस बी है तो बच्चे में हेपेटाइटिस बी न हो, इसलिए जन्म के तुरंत बाद हेपेटाइटिस बी का टीका दिया जाना चाहिए। साथ ही बीसीजी और पोलियो की बर्थ डोज की खुराक दी जानी चाहिए। शुरू में बच्चे की सुरक्षा कवच मां के दूध से प्राप्त होता है, लेकिन डेढ़ माह के बाद सुरक्षा कवच धीरे-धीरे कम होने लगती है। इसलिए टीकाकरण डेढ़, ढाई और साढ़े तीन माह में किया जाता है। बच्चा जब डेढ़ माह का हो जाता है तो उसे रोटा- 1, पोलियो-1, एफआईपीवी-1, पीसीवी-1 और पेंटावेलेंट-1 दिया जाता है। बच्चा जब ढाई माह का हो जाता है तो उसे पोलियो-2, रोटा-2 और पेंटावेलेंट-2 की खुराक दी जाती है। डॉ. चौधरी कहते हैं कि बच्चा जब साढ़े तीन माह का हो जाता है तो उसे पोलियो-3, रोटा-3, एफआईपीवी-3, पीसीवी-2 और पेंटावेलेट-3 की खुराक दी जाती है। इसके बाद जब बच्चा नौ महीने का हो जाता है तो पीसीवी की बूस्टर डोज, खसरा एवं रूबेला और जेई का प्रथम टीका दिया जाता है। बच्चे के टीकाकरण की ये पूरी प्रक्रिया एक साल के अंदर पूरी हो जाती है तो इसको पूर्ण टीकाकरण कहते हैं। इसके अंतर्गत आशा कार्यकर्ता को मानदेय भी प्राप्त होता है। इसके अलावा बच्चे को विटामिन ए नौ महीने से लेकर पांच वर्ष तक दिया जाता है।

रिपोर्टर

  • Dr. Rajesh Kumar
    Dr. Rajesh Kumar

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